जानिये कैसे उत्पन्न हुए थे गोरखनाथ ?

गौरख की उत्पति बताते हैं कि संतों की कृपा से हुई।

 

एक शिव उपासक संत था। उसमें भग्वान शिव की शक्ति थी। एक माई को औलाद नहीं थी। वो उन संत से कहने लगी "महाराज मुझे संतान नहीं है। मुझे कोई आशीर्वाद दे दो।"

वो संत बोले "जाओ माई। हो जाएगा। कर देंगे भगवान दया।"

पर वो माई एेसे नहीं मानी बोली कि "नहीं महाराज। कुछ तो दो।"

उन्होंने अपनी धूनो की राख दे दी, वो बूति दे दी, महादेव को साक्षी रख के।

वो माई लेके आ गई पूडिया को।

एक पड़ोसन बोली "ए क्या ले आई?"

वो माई बताती है कि ऐसे ऐसे बच्चा होने की दवाई लाई हूँ।

पड़ोसन बोली "ऐ मरेगी! गेर इसको उठाके एक तरफ। बच्चा होने का! क्या पता क्या हो जाएगा इन बाबा के उस का।"

वो बहका दी। उसने उठाके वो पूड़िया गोबर में डाल दी।  उपर रोज़ गोबर डाल देती। वो पूरी मांड हो गई सालभर में। 

सालभर के बाद वो संत आये।

उन्होंने सोचा कि महात्मा आया होगा गौरख नाथ उस पूड़िया की कृपा से।

क्योंकि वो शक्ति आनी थी। ये पहले से ही निर्धारीत था कि यहाँ पर वो शक्ति उत्पन होगी।

उन्होंने जा के अलख करा। वो माई बाहर आई। उन्होंने तो सोचा था कि बच्चे को लेके आएगी, खूब खुश होगी मैं बताउंगा उसे।

जब वो आई तो उन्होंने पूछा "माई तेरे संतान नहीं हुई?"

वो माई बोली कि नहीं महाराज मेरे तो कोई संतान नहीं हुई।

संत ने पूछा "वो दवाई दी थी, वो कहाँ है पूड़िया?"

माई: "वो तो मैंने गोबर में गिरा दी।"

संत: "अरे बावली! गोबर में गिरा दी! दिखा कहाँ है वो गोबर? बता कहाँ पे है?"


माई ने वो जगह दिखाई। उन्होंने खोदा। वहाँ गौरख नाथ बच्चे के रूप में उत्पन हुआ।

वो संत उस बच्चे को साथ ले गया कि छोड़! तुम्हारे बस का नहीं

तो महाराज गरीबदास जी की वाणी में आता है,

गौरख उपजे ग्यान से, भई बूत देई महादेव।


सतसाहेब।

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