न डीजे, न तामझाम, और 17 मिनट में हो गई शादी

न डीजे, न तामझाम, और 17 मिनट में हो गई शादी



नवलगढ़। सदियों से चले आ रहे पाखंड़ को दरकिनार कर सीकर, झुंझुनूं, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर सहित राज्य के करीब एक दर्जन जिलों में ऐसी शादियां होने लगी हैं, जिनमें न डीजे, न तामझाम, फालतू का जमावड़ा भी नहीं हो और महज वाणी से शादी समपन्न हो रही हैं।

इससे भी बढ़कर बात ये है कि इन शादियों में खर्चे के नाम पर केवल दुल्हन और दुल्हे के कपड़े होे हैं, जो भी महज नए होते हैं, उनमें किसी तरह का सूट—बूट या महंगे जेवरात से सजी दुल्हन नहीं होती।

नशे से पूर्ण मुक्ति

इन शादियों में नशामुक्ति पहला पाठ होता है। शादी जिस जगह होती है, उसके बाहर ही एक बोर्ड़ लगा होता है, जिसपर साफ शब्दों में बीड़ी, गुटखा, सिगरेट, शराब सहित तमाम अन्य नशे की चीजों को लाने या नशा करने वाले को आने की अनुमति नहीं होती।

रिश्तेदार भी नशा नहीं कर सकते

यह बोर्ड केवल आम आदमी के लिए नहीं होता, वरन दुल्हन और दुल्हे पक्ष के रिश्तेदार भी किसी तरह का नशा नहीं कर सकते। इतना ही नहीं, वरन जीवन में नशा नहीं करने की सीख भी यहां दी जाती है।

कोर्इ् पंड़ित नहीं, केवल वाणी के पाठ से शादी

ऐसी ही एक शादी रविवार को नवलगढ़ के मैणाम गांव में हुई, जहां पर दुल्हन बनी पंकज कुमारी पुत्री सुभाष चन्द्र ने 17 मिनट के वेद मंत्रों से चिडावा तहसील के सुलताना गांव के राधामोहन पुत्र दुलीचन्द के साथ विवाह के बंधन में बंध गईं।

इस तरह हुआ विवाह सम्पन्न

इस विवाह के गवाह बने संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई। सीमित लोगों की मौजूदगी में इस शादी में शिरकत करने वाले बंशीलाल दास ने बताया कि वेदों के प्रमाणित ज्ञान आधार अनुसार ऋगवेद मण्डल 8, सुक्त 46 व मंत्र 10 में ज्योति यज्ञ का प्रावधान है। जिसके मुताबिक यह विवाह पूरा हो गया।

17 मिनट में विवाह

शादी के लिए सिर्फ एक ज्योति जलाई गई। उसके बाद अपने गुरू को दण्डवत्त प्रणाम और अमृतवाणी करके 17 मिनट में पूर्ण विवाह सम्पन हुआ।

जिला कोर्डिनेटर भक्त विवोद दास गुढ़ा ने बताया कि सीमित रिश्तेदार एवं संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई शामिल हुए। विवाह कबीरपंथी संत रामपाल जी महाराज के द्वारा दिए गए ज्ञान अनुसार सम्पन्न हुआ।

एक अन्य भक्त बंशीलाल दास ने बताया कि कबीरपंथ के अनुसार यह पूर्ण विवाह सम्पन हुआ, जिसे कबीरपंथी ‘रमैणी’ कहते हैं।

इस विवाह में आजकल शादियों के लिए सबसे अहम मानी जाने वाले सात फेरे और बैण्ड बाजा भी नहीं बजा।

इतना ही नहीं पकवान व अन्य साजो—सामान अर्थात् दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं लिया दिया गया।

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