ये असली नहीं नकली होली हैं ।

ये असली नहीं नकली होली हैं । होली मनाने की कहानी अजीब है। गीताजी में तो कहीं कोई भी त्योहार को मनाने का वर्णन नही है।



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हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए।

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा। हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ।

हिरणयकश्यप की बहन होलिका जिसे वरदान में ओढ़नी मिली थी जो आग मे भी नहीं जलती थी।
हिरणयकशयप के पुत्र प्रह्लाद ने पिता को भगवान मानने से इन्कार किया तो पिता ने खुद के बेटे को मारने के लिए अपनी बहन से ओढनी पहन उसके पुत्र को अपनी गोदी में आग में लेकर बैठ ने को कहा ताकि प्रह्लाद जल कर स्वाहा हो जाए और होलिकानहीं मरेगी।
परन्तु हुआ इसके विपरीत होलिका की ओढनी उड़ कर प्रहलाद पर आ गई ।होलिका जलकर खाक हुई और प्रहलाद की रक्षा हुई। तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए परमात्मा कबीर जी भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

ये बात राहत देती है कि प्रलाद की रक्षा हुई पर रंगों और पानी से लगातार ज़ोर ज़बरदसती करके महीना भर दुसरों को परेशान करना गलत है । भांग पीना दारु पीना ताशपत्ते खेलना काले पीले भयंकर चेहरे लेकर घुमना गलत है। गोबर और कीचड़ में एकदुसरे को गिराना क्या सही है?

ये कैसे त्योहार हो गया जिसमे अश्लील गाने बजाए जाते हैं लड़कियों औरतों के साथ अश्लीलता की जाती है। इसे त्योहार कहना ठीक न होगा ये तो इंसानियत का गला घोंट चुका है।
प्रहलाद ने तो परमात्मा पाने की खातिर महज दस साल की आयु में आग की तेज लपटों में तक जल जाना बेहतर समझा । राक्षस को भगवान न कहने का साहस किया। जीवन के अंत तक सच्चे परमात्मा में लीन रहा।

होली तो परमात्मा के नाम में होती है |

कबीर जी कहते हैं-

"सत्यनाम पालड़े रंग होरी हो,
तो न तुले तुलावे राम रंग होरी हो ।
तीन लोक पासंग धरे रंग होरी हो,
तो न तुले तुलावे राम रंग होरी हो ।।"

असली त्योहार परमात्मा के रंग में रंगना है ! रंगना है तो रंगों अपनी मैली आत्मा को सतनाम से धोने हैं अपने युगों युगों के पापों की गठरी को। मनाओ खुशी और गाओ गीत परमात्मा के गुणों के । इस बार से ऐसी होली मनाओ जैसी प्रह्लाद ने ध्रुव ने गुरुनानक देव जी ने मीरा बाई जी ने गरीबदास जी ने मुलक दास जी ने जीज़स ने मोहम्मद जी ने परमातमा के रंग में रंग कर गाई। जीवन रंगों से गुलज़ार हो जाएगा। एक बार कबीर जी का सत्संग सुन के देखो और विचार करो जीवन बदल जाएगा। भक्ति करो जो रब स्वयं बताए।नकली होली का रंग उतर जाएगा। परमात्मा का रगं चढ़ गया तो जीवन सफल समझना।


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